तुम किस जहाँ में जा के मेरी जान खो गये : शायर आशीष अश्क

उज्जैन। ग़ज़लों की भाषा को आत्मसात कर चुके शायर डॉ. अखिलेश चौरे अखिल की ग़ज़ल अहमियत जानी तेरी हमने तेरे जाने के बाद, सुकूँ भी साये का समझे धूप में आने के बाद… से ग़ज़लांजलि साहित्यिक संस्था की काव्य-गोष्ठी प्रारम्भ हुई।

गोष्ठी में सम्मिलित हुए कवि रामदास समर्थ ने मानव कुण्ठा पर कविता बाँध रखीं जी मन की गाँठें, खोलूँ तो खोलूँ कैसे… पढ़ी। डॉ. श्रीकृष्ण जोशी की अध्यक्षता में दिलीप जैन ने कम शब्दों की ग़ज़ल खुद्दारी है बेबाकी है, यह भी मेरी चालाकी है … पढ़कर ग़ज़लों के क्षेत्र में दस्तक दी। विनोद काबरा ने दुनिया के मायाजाल में फँसे व्यक्ति को नसीहत देती रचना दुखों की खान खरीद चला, अब तू क्यों शोक मनाता है…प्रस्तुत की। वहीं शायर आरिफ़ अफ़ज़ल ने पहले पता कीजे समंदर की गहराई का, फिर पूछना तुम हाल मेरी तन्हाई का… सुनाकर सभी का दिल जीत लिया। ग़ज़लों के दौर को और आगे बढ़ाया शायर विजयसिंह गहलोत साकित ने, उन्होंने चला जब ज़िक्रे गुलशन हमको दिल के ख़ार याद आये, चली जब बात ज़ुल्मों की तो वो ग़मख़्वार याद आये… ग़ज़ल पढ़ी। प्रफुल्ल शुक्ला सरकार ने सुन्दर नारी अँखियाँ खोले मनोभाव समझाती है, प्रियतम मी जल्दी आओ याद तुम्हारी आती है…शृंगार रस से परिपूर्ण रचना पढ़ी। अशोक रक्ताले ने शीत पर दोहे पढ़े तो अवधेश वर्मा नीर ने मनुष्य होने के महत्त्व पर रचना पढ़ी। कार्यक्रम का अन्तिम रचना सत्यनारायण सत्येन्द्र ने शीत के प्रकोप से भरमाया मन, थर्राया मन…शीत से त्रस्त हर व्यक्ति को समर्पित की। डॉ. हरिमोहन बुधौलिया ने संस्था की प्रगति पर अपनी रपट प्रस्तुत की। आभार शायर आरिफ़ अफ़ज़ल ने ज्ञापित किया।

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