उज्जैन। रूपान्तरण दशहरा मैदान पर ग़ज़लांजलि की काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। डॉ. श्रीकृष्ण जोशी की अध्यक्षता में आयोजित गोष्ठी में अशोक रक्ताले ने प्रयाग में चल रहे कुम्भ पर घनाक्षरी सुनायी। विनोद काबरा ने शब्दों की महिमा पर काव्य प्रस्तुत किया तो दिलीप जैन ने क्षणिकाएँ सृष्टि के रंगमंच पर दर्शक हम, किरदार भी हम ही हैं सुनायी। सत्यनारायण सत्येन्द्र ने मौसम में मधुमास की गंध को महसूस करते हुए रूप रस गंध, फूलों सी महक, मादकता घोल रही, यौवन सा नशा छाने लगा, मन शराबी हो गया कविता सुनायी। रामदास समर्थ ने पहचान कर अपनी खुशी रखिये दिल में सहेजकर, दी दस्तक सुनहरी सुबह ने देखिये ज़रा फेर कर अपनी नज़र… से गोष्ठी में मधुमास का वातावरण बनाए रखा। प्रफुल्ल शुक्ला ने राजनीति पर व्यंग प्रस्तुत किया शहर शहर चल रहा था प्रचार सजा था सौदेबाजी का बाज़ार एक नेता कुछ बाँटकर जाता तो दूसरा तराजू से तौलकर जाता। शायर विजयसिंह गेहलोत ने दीवार पर टंगी हुई तस्वीर की तरह, ये ज़ीस्त है बिगड़ी हुई तकदीर की तरह ग़ज़ल सुनायी। गुजरे हैं क्या बताएँ हम किस किस मुकाम से उठने लगा यकीन अब रिश्तों के नाम से ग़ज़ल डॉ. अखिलेश चौरे ने सुनायी। डॉ. विजय सुखवानी ने वक्त वक्त की बात है वक्त वक्त की बात, होगी कल सुबह वहीं जहाँ अँधेरी रात ग़ज़ल से अपनी बात रखी। आशीष अश्क ने पिता से बिछड़ने पर ग़ज़ल जिस दम हम वालिद घर से रुखसत होते हैं, दूर यकायक सर से छत से हो जाती है सुनायी। शायर आरिफ़ अफ़ज़ल ने बहुत अज़ीज़ बड़े मोहतरम से लगते हैं, तुम्हारे ग़म हमें अपने ग़म से लगते हैं ग़ज़ल सुनाकर सभी को मन्त्र मुग्ध किया। अवधेश वर्मा ने गृहस्थ आश्रम पर कविता पाठ किया। गोष्ठी में अवधेश वर्मा, विनोद काबरा एवं डॉ. हरिमोहन बुधौलिया का सम्मान किया गया।