(पंडित कैलाशपति नायक)
संदर्भ है- अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव (गीता जयंती दिनांक 11/ 12 /2024 बुधवार को कालिदास अकादमी परिसर) उज्जैन में समय के भारतीयकरण के लोकार्पण का
समय के भारतीय कारण की मांग स्वराज्य की प्रथम और अनिवार्य आवश्यकता है। यतेमहि स्वराज्ये (ऋग्वेद 5/66/6) अर्थात् हम स्वराज्य के लिए सदा यत्न करें।
मध्यप्रदेश के विद्वान वक्ता एवं मुख्यमंत्री डॉ. मोहन प्रसाद यादव द्वारा पुस्तक समय के भारतीय कारण का लोकार्पण किया जाना स्वराज्य का प्रथम यत्न ही है। इस पुस्तक का प्रकाशन महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ स्वराज्यसंस्थान संचालनालय के निदेशक, श्री राम तिवारी जी मध्य प्रदेश शासन द्वारा किया गया है। पुस्तक समय का भारतीय करण के लेखक और अनुसंधान कर्ता पंडित कैलाशपति नायक विगत 44 वर्षों से, समय का भारतीय कारण की मांग करते हुए, इसकी विषय वस्तु का अनेकों बार समाचार पत्र, मासिक-पत्रिकाओं तथा अन्य पुस्तकों में प्रकाशन कर देशभर के विद्वानों को भेजते रहे हैं।
भारत के नाम चीन विद्वानों ने इसका समर्थन किया है। प्रकाशन के तौर पर, यह समय का भारतीयकरण की मांग, अंग्रेजी भाषा के बड़े फलक पर प्रकाशित होकर, दुनियाभर के एक सैकड़ा से अधिक विदेशों तक पहुंच गई है। किंतु इस विषय वस्तु को डॉक्टर मोहन यादव मुख्यमंत्री (मध्यप्रदेश, शासन भोपाल) द्वारा नई धार देते हुए अंग्रेज़ी रूढ काल गणना से मुक्त होने, स्वराज्य की शक्ति समयके भारतीयकरण किये जाने (गीता जयंती के शुभ अवसर पर) आह्वान किया है।
क्या है, समय का भारतीयकरण?
विक्रम संवत (हिन्दू) पंचांग- भारतीय हिन्दू काल गणना में दैनिक पंचांग के रूप में परिगणित होती है। इसमें (1) तिथि (2) वार (3) नक्षत्र (4) करण (5) योग इत्यादि, ये पांचों अंग, दैनिक काल गणना के पंचांग कहे जाते हैं। अस्तु! चन्द्र ग्रह अपनी दैनिक गति से सूर्य से आगे जिस नक्षत्र पर वर्तमान होता है, उस दिन वह नक्षत्र पंचांग में दिया जाता है तथा तिथि, करण, योग भी सूर्य से चंद्र की दूरी के अतंराशों से निश्चित होते हैं। इनमें दिन वार अपने होरा चक्र (अहोरात्र सिद्धांत) से अर्थात् एक सूर्योदय के क्षण से अग्रिम सूर्योदय तक वर्तमान रहता है। अत: सूर्योदय पंचांग का मुख्य आधार है। यह पंचांग दैनिक काल गणना (हिंदू चांद्र वर्ष) चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुड़ी पड़वा से) ही विक्रम संवत वर्षमान प्रारंभ होता है।
दूसरे प्रकार से कार्य काल गणना राष्ट्रीय शाके (वर्षमान) नाम से प्रचलित है। यह राष्ट्रीय शाके पंचांग सरकार नई दिल्ली द्वारा निर्मित एवं प्रतिवर्ष प्रकाशित होकर तथा बिक्री के लिए बाजार में आता है। इस राष्ट्रीय शाके पंचांग का वर्ष का आरंभ विषुव दिवस 21 मार्च (प्लुत वर्ष में ) 22 मार्च को होता है।
ध्यातव्य यह- है कि, जैसे अंग्रेजी कैलेंडर में, डेट, हिंदी पंचांग में तिथि और वार निश्चित होकर प्रसारित होते हैं, वैसे ही इस राष्ट्रीय शाके पंचांग में डे- एंड- डेट सुनिश्चित नहीं है। अत: भारत सरकार के इस राष्ट्रीय शाके पंचांग से डे-एन्ड- डेट से सही काल गणना मे भ्रम उत्पन्न होता आ रहा है।यह सिद्धांत अपूर्ण है।
बस यही एक सुधार की संपूर्ण विषय वस्तु, समय के भारतीय कारण किये जाने का प्रस्ताव – पुस्तक रूप में प्रस्तुत होकर, माननीय मुख्यमंत्री महोदय के कर-कमलों से लोकार्पण हुआ है।
श्रीमद् भगवद्गीता गीता (विभूति नाम अध्याय 10, श्लोक 30) में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- ‘काल : कलयतामहम्Ó। अर्थात् गणना करने वालों का समय मैं हूं। यही कारण है, भारत में काल को ईश्वर के स्वरूप में मान्य करते हुए महाकाल ज्योतिर्लिंग उज्जैन को भगवान के रूप में पूजा जाता है और उनकी ब्रह्म मुहूर्त की सूर्योदय पूर्व की भस्म आरती प्रसिद्ध है।
अब जो हिंदू संस्कृति समय गणना को ईश्वर मानकर काल के विभिन अवयव, जैसे तिथि, वार, व्रत जयन्ती, उत्सव मुहूर्त आदि का अनुपालन करती है, उस संस्कृति सभ्यता को अंग्रेजों ने उल्टा पाठ पढ़ा दिया। अर्थात् ग्रीनविच लंदन के जीरो रेखांश से भारत 5.30 घंटे आगे हैं, इसके उलट भारत को 5.30 घंटे पीछे कर दिया। इसलिए इंग्लैंड के लंदन की मध्य रात्रि में जब जीरो आवर होता है, तब भारत में सूर्योदय का समय होता है। किंतु समय का बोध हमें 5.30 बजे सुबह का गलतबोध कराया जाता है। जब भारत के सूर्योदय के समय जीरो आवर होगा तब समय का भारतीयकरण होगा तथा भारत विश्व में दैनिक कालगणना में विश्व का प्रथम देश होगा।
ग्रीनविच मीन टाइम और भारत में सूर्योदय के समय जीरो आवर होने से विश्व में कॉल कणना समान होगी। 5.30 घंटे की दूरी तो ग्रीनविच से भौगोलिक दूरी है जो पूर्व में भी थी और हमेशा रहेगी। इसलिए जब कोई भारतीय विदेश जाता है, तब वहां के स्थानीय समय के अनुसार अपनी घड़ी के समय बदलता है।
यह अन्तर तो प्रत्येक देश-देशांतर में होता ही है। फिर भारत क्यों अभी- भी अंग्रेजी दासता वाले युग में और समय के ज्ञान में अंधविश्वासी होकर, काल्पनिक काल गणना में अवैज्ञानिक बना हुआ है। इस के साथ पूरा भारत मूर्ख- धूर्त विदेशी कुचक्र में अभी- भी गुलामी की-कुप्रथा से ग्रस्त हैं।
जबकि मुख्य होरा शब्द भारत में वैदिक गणित विज्ञान (अहोरात्र सिद्धांत) का संक्षिप्त शब्द है। अंग्रेजी में आवर (घंटा) शब्द होरा शब्द का ही रूपांतरण है। हिन्दू वेदांग ज्योतिष का अहोरात्र शब्द जो 24 घण्टे का होता है, उसका 24वां हिस्सा होरा शब्द है। 60 घटी या 24 घण्टे का एक अहोरात्र। और ढाई घटी का एक होरा या 60 मिनट अथवा एक घंटा।
इस अहोरात्र सिद्धांत को श्रीमद्भगवद्गीता अक्षर ब्रह्म योग नामक अध्याय (8 के श्लोक 17) में ब्रह्मा जी के एक दिन रात का मान (समय) एक अहोरात्र बताते हुए, भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- सहस्रयुग पर्यन्तम् अह: यत ब्रहम्ण: विंदु:, रात्रिं युग सहस्रान्ताम् ते अहोरात्र विद:जन:।।17।।
अर्थात् हे! अर्जुन ब्रह्माका जो एक दिन है उसको एक हजार चतुर्युगी वाला और, रात्रि को भी एक चतुर्युगी तक-की अवधि वाली अर्थात् ब्रम्हा जी का एक अहोरात्र सिद्धांत को जो इस प्रकार तत्व से जानता है वे योगी जन काल के तत्व (मर्म) को जानने वाले हैं। (अह:=ब्रम्हा जी का एक दिन)
अहोरात्र= ब्रह्मा जी का एक दिन-रात।
मनुष्यों एक दिन -रात=मनुष्यों का एक अहोरात्र।
यह अहोरात्र 24 घण्टों का होता है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी और श्रीमद् भगवद्गीता को तथा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव जो भग्वद्गीता को और भगवान श्री कृष्ण युग पथ चिन्हों को अनुसंधानकर पुनर्स्थापना में संकल्पित हैं, इनके शासन अन्तर्गत संस्कृति विभाग से ही प्रकाशित होकर, मुख्यमंत्री के कर कमलों से ही समय के भारतीय करण पुस्तक का लोकार्पण किया गया है, जो स्वधर्म और स्वराज्य के लिए आव्हान है। स्वधर्म पालन से ही स्वराज्य हासिल होता है। स्वराज्य विहीन स्वतंत्रता अराजकता उत्पन्न करती है।
ज्ञान यदि जीवन है, तो अध्यात्म ही विज्ञान होगा।
सत्ता यदि व्यवस्था है तो, धर्म ही कल्याण होगा।।