रेवती नक्षत्र शुभ मांतग योग में मनाया जाएगा बसंत पंचमी मां सरस्वती का पर्व 

उज्जैन। मातंग योग एक शुभ योग है, यह मातंग योग में दान करने से इंद्र के समान सुख मिलता है। तिब्बती बौद्ध धर्म में भी मातंग शब्द का इस्तेमाल होता है। तिब्बती बौद्ध धर्म में मातंग शब्द का इस्तेमाल हाथी के लिए किया जाता है। चक्रसंवर समाधि के दौरान मातंग का इस्तेमाल किया जाता है। चक्रसंवर समाधि, नेपाल में नेवाह महायान-वज्रयान बौद्धों की मुख्य पूजा और साधना पद्धति है।
ज्योतिर्विद पं अजय कृष्ण शंकर व्यास के अनुसार जब शुक्र और चंद्रमा एक साथ आते हैं, तो यह कलात्मक योग बनता है। इस योग से लोगों के अंदर रचनात्मकता बढ़ती है और कार्यक्षेत्र में सफलता मिलती है। काल गणना उज्जैन पंचाग के अनुसार, बसंत पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त 3 फरवरी को प्रातः उदय तिथि है जो मनोकामनाएं पूर्ण करती है। सिद्धि समृद्धि सफलता के लिए रेवती नक्षत्र शुभ या मंगल कार्य कर सकते हैं। प्रत्येक कार्य के लिए अलग अलग योग का निर्धारण किया गया है। शुभ योग में यात्रा करना, गृह प्रवेश, नवीन कार्य प्रारंभ करना, विवाह आदि करना शुभ होता है। मां सरस्वती को ज्ञान और विद्या की देवी कहा जाता है। बसंत पंचमी के दिन को अबूझ मुहूर्त पर उनकी पूजा करने का विधान है।
मान्यता है कि इस दिन शिक्षा परिक्षा आरंभ करना भी काफी शुभ माना जाता है। इसलिए इस दिन विद्यारंभ संस्कार किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन शिक्षा आरंभ करने से व्यक्ति बुद्धिमान और ज्ञानी बनता है। इसके अलावा मां सरस्वती को संगीत और कला की जननी भी माना जाता है। इसलिए किसी भी संगीत या करता की शिक्षा शुरू करने से पहले हमेशा उनकी पूजा की जाती है। पुराणों मतानुसार ब्रह्मवैवर्त पुराण, स्कंद पुराण गणेश पुराण, विष्णु पुराण, देवी भागवत पुराण, शिव पुराण, कालिका पुराण, तंत्र चुरामणी, सरस्वती उपपुराण एवं अन्य सभी पुराण, रामायण, महाभारत, वेद, उपनिषद।
मुख्य त्योहार उपासना दिवस
वैदिक ज्योतिष गणनानुसार बसंत पंचमी नवरात्रि मुख्यता सातवें दिन आवण मास के बुधवार को इनकी पूजा होती है।
वाग्देवी वीणा वादनी मां सरस्वती प्रकट
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने बरमांड की रचना की थी। लेकिन वह परेशान थे कि उनकी सारी रचना शांत और मृत शरीर के समान थी, क्योंकि ब्रहमाण्ड में कोई ध्वनि और संगीत नहीं थी। ऐसे में ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें अपनी परेशानी के बारे में बताया। भगवान विष्णु ने ब्रह्मा को सुझाव दिया कि देवी सरस्वती उनकी मदद करेगी और समस्या का समाधान करेंगी। ऐसे में भगवान ब्रह्मा ने देवी सरस्वती का आह्वान किया। जब वह प्रकट हुई और ब्रहमा जी के अनुरोध पर उन्होंने अपनी वीणा से ब्रह्मा की रचना को जीवन प्रदान किया। जब उन्होंने वीणा बजाना शुरू किया तो पहला अक्षर सा निकला, जो वर्णमाला सात संगीत सुरों (सात स्वरों) में से पहला है। इस प्रकार ध्वनि रहित ब्रह्माण्ड को ध्वनि प्राप्त
हुई। इससे भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हुए और उन्होंने सरस्वती का नाम बागेश्वरी रखा उसके हाथ में वीणा है। इसलिए उन्हें वीणापाणिभी कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र अनुसार जिस प्रकार उत्तरायण दक्षिणावन छह महीने का होता है उसी तरह एक वर्ष में ऋतुएँ मानी गयी है। ज्योतिष के अनुसार चैत्रमास से शुरु करते हुए दो-दो मास की एक ऋतु के हिसाब से छः ऋतु बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर नाम रखे गए हैं। जिस वर्ष में अधिमास होता है उसमें कोई एक ऋतु 90 दिन की मानी गयी है।
हिंदू धर्म में बसंत पंचमी का विशेष महत्व है। इस दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती की विधिवत पूजा करने का विधान है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन मां सरस्वती का अवतरण हुआ था। इस कारण इस दिन बसंत पंचमी के रूप में मनाते हैं। इसके साथ ही इस दिन से बसंत ऋतु भी आरंभ हो जाता है। इस दिन मां
सरस्वती की विधिवत पूजा करने साथ मां लक्ष्मी और विष्णु जी की भी पूजा की जाती है। आइए जानते हैं बसंत पंचमी की तिथि, मुहूर्त और महत्व पुजा विधि मां सरस्वती की प्रतिमा या चित्र को उत्तर दिशा में लगाना चाहिए। इस दिशा में मूर्ति लगाने से इंसान को शिक्षा संबंधी कार्यों में सफलता मिलती है। और सभी काम बिना किसी बाधा के पूरे होने लगते हैं।
मां सरस्वती की ( मुर्ति ) प्रतिमा या तस्वीर पर पीले वस्त्र अर्पित करें गेली चंदन हल्दी केसर चंदन पीले सरसों के फुल, पुजा स्थान पर वाद्ययंत्र पुस्तक की भी करे। सरस्वती स्तुति वंदना पाठ करें, इच्छित फल प्राप्ति के व्रत करें, पान सुपारी नारियल ध्वजा चढ़ाई वसंत पंचमी पर ब्रह्मचर्य का पालन करें। वृक्ष ना काटे हो सकें तो जल अर्पित करें। जाने अनजाने में भुलकर किसी को गलत शब्द नहीं कहें खासकर माता पिता गुरु शिक्षक सलाहकार को।

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