मैं प्रयागराज हूं, मौनी अमावस्या के पवित्र स्नान के लिए जितनी उत्सुक भारत भूमि के करोड़ों हिन्दुओं की आस्था थी उतना ही उत्सुक मैं भी था। दूर दूर से मेरी ओर आते हुए रास्तों को जब मैंने देखा तो ऐसा लगा मानो आज समस्त रास्ते केवल मेरी ही ओर आ रहे हों। ना उम्र की सीमाएं श्रद्धालुओं को रोक पा रही थीं, ना भीड़ उनके उत्साह को कम कर पा रही थी। मेरी ओर आ रहे हर कदम से मैं अभिभूत हो रहा था, ऐसा लगता मानो इस कुंभ से मेरे भी पुण्य का उदय हुआ हो रहा हो। हर हर महादेव, जय जय श्री राम के उद्घोष के साथ घाटों की ओर बढ़ते श्रद्धालुओं के जय घोष से मेरा रोम रोम पुलकित हो रहा था कि अचानक मध्य रात्रि में भीड़ से भगदड़ की असमान्य घटना घटित हो गई। मोक्षदायिनी से पापों का उदय मांगने आए कई लोगों के जीवन का अस्त देख मेरी प्रसन्नता आंसुओं में परिवर्तित हो चुकी थी। तीर्थ राज की उपाधि से सज्जित मैं प्रयागराज उस क्षण लज्जित महसूस कर रहा था। करोड़ों लोगों की प्रार्थना के स्वर के साथ मैं भी अपनी प्रार्थना के स्वर मिलाते हुए परम पिता परमेश्वर से दिवंगतों को मुक्ति प्रदान करने और घायलों के अतिशीघ्र स्वस्थ होने की कामना के जाप कर रहा था। बिछड़ों के पुनः मिलाने हेतु अपनी राहों को निर्देशित कर रहा था। विपदा का यह दृश्य देखकर मैंने सोचा कि आगे सब कैसे होगा…? क्या होगा..? क्या मेरी धरती पर कुंभ निर्विघ्न रूप से संचालित हो पाएगा…? प्रार्थनाओं, अफरा तफरी और चिंतन के इस दौर में कब सुबह हो गई मुझे पता ही ना चला। तभी अचानक मैंने देखा धर्म प्रेमियों के आस्था, श्रद्धा और उत्साह में तनिक भी कोई फर्क नजर नहीं आ रहा है। मानो कोई दैविक शक्ति सम्पूर्ण क्षेत्र में आ गई हो। करोड़ों लोग मेरी ओर पुनः अग्रसर हो रहे हैं। आपदा का कोई प्रभाव श्रद्धालुओं की आस्था को डिगा नहीं पा रहा था। दोगुने, चौगुने उत्साह के साथ धर्मप्रेमी जन स्नान के लिए बढ़ते चले जा रहे हैं। समस्त अखाड़ों के साधु, संत, महात्मा, महामंडलेश्वर, ऋषि मुनि, संत, तपस्वीजन पूर्ण भाव से त्रिवेणी घाट पर पवित्र स्नान कर रहे थे। रात्रि की दानवी शक्ति से उत्पन्न हुई परिस्थिति का कोई प्रभाव प्रयागराज में दिखाई नहीं दे रहा था। दैविक शक्ति के प्रभाव से पुनः सब कुछ सुचारू रूप से संचालित होने लगा। विपदा हारी, आस्था जीती… समस्या खामोश हुई, श्रद्धा का जयघोष हुआ… परेशानियां शांत हुई, विश्वास का पुनर्जन्म हुआ… मेरी आंखों ने एक अलौकिक दृश्य उस क्षण देखा, मेरे हृदय के भावों में एक अद्भूत अनुभूति उस क्षण हुई। करोड़ों करोड़ लोग जब मां गंगा, यमुना, सरस्वती के संगम पर स्नान कर खुद को समस्त पापों से मुक्त करने की प्रार्थना कर रहे थे तब मैं भी भगवान हरि और हर को मुझे इस पुनीत अवसर का परम साक्षी बनाने हेतु कोटि कोटि धन्यवाद दे रहा था। जो लोग मेरी भूमि का स्पर्श कर खुद को भाग्यशाली पा रहे थे, उन्हीं लोगों के चरण अपनी भूमि पर पड़ने से मैं खुद को सौभाग्यशाली पा रहा था। कभी तो श्री हरि विष्णु की कृपा से अमृत की बूंद के प्रक्षालन से मेरी धरा धन्य हुई थी, कभी देवाधिदेव महादेव की कृपा से मां गंगा की धारा ने मेरी धरा को धन्य किया और अब 144 वर्षों के दुर्लभ संयोग के इस परिपूर्ण महाकुंभ में मौनी अमावस्या के शुभ दिवस पर करोड़ों पुण्यशालियों के संगम तट पर स्नान से मैं एक बार पुनः धन्य हुआ हूं। आस्था का यह क्रम अनवरत यूंही चलता रहे और सनातन संस्कृति का ध्वज सदा लहराता रहे, इन्हीं मंगलकामना के साथ हर हर महादेव, जय जय श्री राम। आप भी महाकुंभ में पधारकर प्रयागराज को आपकी सेवा करने का अवसर देवें।
अमृत के महा उत्सव के शुभ आगाज की भूमि
सनातन संस्कृति और धर्म के सुकाज की भूमि
जहां मिलती है प्रीति, पुण्य और केवल्य की धारा
करोड़ों हिन्दुओं का दिल है प्रयागराज की भूमि।
-कवि अमित जैन (काव्य अमित)
Mo. 90090 01814
प्रेरक, आनंद दायी