शिवाजी की प्रेरणा स्त्रोत- माँ जिजाऊ


वीर जीजाबाई महान मराठा शासक और योद्धा शिवाजी की माताजी थी। शिवाजी मुगल साम्राज्य के विरुद्ध मजबूती से लड़े और हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की। जीजाबाई का जन्म 1594 में महाराष्ट्र के एक गांव सिंदखेड में हुआ था। उनके पिता शाही दरबारी और प्रमुख मराठा सरदार थे, जिनका नाम लखुजी राव जाधव था और माता का नाम महालसा बाई था। उनके पिता अहमद नगर में निजामशाही की सेवा करते थे। उस कालखंड के रीति रिवाज के मुताबिक उनका विवाह शहाजी भोंसले से हुआ। शहाजी भी निजाम शाह के दरबार में राजनायिका पद संभालते थे, वह एक बेहतरीन योद्धा भी थे वैसे तो दंपती का वैवाहिक जीवन बेहद सुखद था लेकिन उनके परिजनों की आपसी टकराहट ने तनाव को जन्म दिया। जीजाबाई अपने पति के साथ शिवनेरी के किले में रह रही थी, उन्हें इस बात का दु:ख था कि उनके पिता व पति दोनों ही किसी शासक के अधीन काम कर रहे हैं। उनकी प्रबल इच्छा थी की मराठों का अपना साम्राज्य स्थापित हो। वह हमेशा भगवान से प्रार्थना करती थी कि उनके कोख में ऐसा पुत्र जन्म ले जो मराठा साम्राज्य की नींव रख सके।
उनकी प्रार्थना का फल उन्हें शिवाजी के रूप में पुत्र प्राप्ति से हुआ। शिवाजी का जन्म वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया (1627 ईस्वी) में शिवनेरी किले में हुआ था। बचपन में ही जीजाबाई शिवाजी को श्री राम, मारुति, श्री कृष्ण के जीवन के बारे में बताती थी और महाभारत, रामायण जैसे ग्रंथों के प्रसंग सुनाकर उन्होंने शिवाजी के मन में राष्ट्रभक्ति के बीज बोकर एक आदर्श शासन के रूप में ढालने की कोशिश की। वह न केवल शिवाजी की माँ थी बल्कि प्रेरणा स्त्रोत भी थी।
वह एक पवित्र पत्नी और कर्तव्य निष्ठ माँ थी। देवी भवानी पर अटूट विश्वास होने से उन्हें कठिन परिस्थितियों का सामना करने की अपार शक्ति प्राप्त होती थी। जीजाबाई युद्ध कला में निपुण थी, उनमें घुड़सवारी के साथ-साथ तलवार चलाने की कुशलता भी थी। जीजाबाई राज्य के सामाजिक-राजनीतिक मामलों पर कड़ी नजर रखती थी और जरूरत पड़ने पर प्रशासन को कुशलता पूर्वक संभालती थी। शिवाजी को अफजल खान के वध की प्रेरणा देने, दुनिया को मराठी वीरता का प्रदर्शन दिखाने की दूर दृष्टि शिवाजी-अफजल खान भेंट प्रसंग में उजागर होती है।
जब सिद्धी जौहर ने पन्हाला किले पर तटबंदी की थी तब शिवाजी महाराज चार महीने तक फंसे रहे थे, उस समय जीजाबाई ने स्वराज की जिम्मेदारी संभाली थी। जब तक शिवाजी किले से सुरक्षित बाहर नहीं निकले तब तक जीजाबाई ने शाइस्ताखान के साथ लड़ने वाले मराठों का नेतृत्व कर स्वराज की रक्षा की।
शहाजी राजे को जब महाराष्ट्र छोड़कर अपने बड़े बेटे के साथ कर्नाटक जाने के लिए मजबूर होना पड़ा उस समय जीजाबाई ने स्थीर होकर आदिलशाह द्वारा शहाजीराजे को दिए गए पुणे और सुपे परगना की देखभाल कर शिवाजी को एक आदर्श बेटे की तरह पालन-पोषण किया। पुरंदर की संधि के बाद उन्होंने शिवाजी को हिंदवी स्वराज्य की पुर्नस्थापना के लिए प्रेरित किया। एक राजमाता के रूप में वे निरंतर अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता देती थी। अपने पति की मृत्यु के बाद सती ना जाने का फैसला कर उन्होंने शिवाजी राजे का मार्गदर्शन किया।
शिवाजी के राज्याभिषेक का स्वर्णिम क्षण देखने के महज 12 दिन बाद 1674 में उन्होंने अंतिम सांस ली। अपना संपूर्ण जीवन उन्होंने स्वराज्य के लिए समर्पित किया, इस तरह जिजाऊ के रूप में एक आदर्श हिंदू महिला की छवि विश्व पटल पर उदीयमान हो गई। जीजा माता का व्यक्तित्व विश्वास, संकल्प, धैर्य, निर्भयता, साहस और त्याग जैसे बहुआयामी गुणों से परिपूर्ण था। उनकी पवित्र स्मृतियों को सादर नमन।

डॉ. नेत्रा रावणकर
मो. 94253 79084

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