सनातन धर्म में वसन्त पंचमी

माँ सरस्वती देवी का आनन्दोत्सव

डॉ. शारदा मेहता
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सनातन धर्म परम्परा में वसंत पंचमी का अपना एक विशेष स्थान है। माघ मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत पंचमी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन विद्या की देवी सरस्वती माता का पृथ्वी पर प्रादुर्भाव हुआ था। ब्रह्माजी ने उन्हें कई महत्वपूर्ण कार्य सौंपे।
पृथ्वी पर सरस्वतीजी के आगमन के साथ ही वाणी का प्रस्फुटन हुआ। जैसे ही सरस्वतीजी ने हस्त में धारण की हुई वीणा के तारों को झंकृत किया। चारों ओर शब्द गुंजायमान हो गये। पक्षी चहचहाने लगे, मानव को भाषा का ज्ञान प्राप्त हुआ। सरस्वती माता के चारों हाथों में चार वस्तुएँ हैं। एक हस्त में वाद्ययंत्र वीणा है, दूसरे हस्त में वेद ग्रंथ हैं, तृतीय हस्त में अक्षमाला तथा चतुर्थ हस्त में स्फटिक माला है। वीणा कलात्मकता का प्रतीक है। पुस्तक (वेद) ज्ञान का प्रतीक है जो वेदों में निहित है। अक्षमाला ज्ञान का सन्देश है- यह ”अÓÓ वर्ण से प्रारंभ होकर ”क्षÓÓ वर्ण तक समाप्त होती है जो वर्णमाला के स्वरों का बोध कराती है। स्फटिक माला सात्विकता और ईश्वर भक्ति का सन्देश देती है।
माता सरस्वती का वाहन हंस है जो नीरक्षीर विवेकी है। न्याय प्रिय है। माधुर्य और सौन्दर्य का प्रतीक है। राजहंस पर विराजित माता सरस्वती की मुस्कुराहट और श्वेत वस्त्र धारिणी उनकी छबि भक्तों को सर्वदा प्रसन्न और सामान्य जीवन जीने की प्रेरणा देती है। माता सरस्वती का आसन श्वेत कमल है, जो शुभ आचरण की ओर इंगित करता है। कुछ धार्मिक ग्रंथों में माँ भारती को मोरपंख पर विराजित दर्शाया गया है।
विद्यार्थीगण अपने-अपने घरों में तथा विद्यालय, महाविद्यालयों में वसंत पंचमी के दिन सरस्वती देवी का पूजन करते हैं। ज्ञानार्जन के लिए यह पूजन परम्परा अति आवश्यक है। भारतीय ज्ञान परम्परा की यह धूरी है। विद्या की देवी माँ शारदा का पूजन जब बालक के अध्ययन का श्रीगणेश किया जाता है तब भी उसके नन्हें हाथ में लेखनी देकर पूजन करवाया जाता है। लेखनी सीधे हाथ में दी जाती है और ”गÓÓ गणेशजी का लिखवाने का प्रयास किया जाता है। नन्हें बालक द्वारा किया गया यह पूजन भारतीय ज्ञान परम्परा के संस्कार का बीजारोपण है। यही बीज भविष्य में परिवार का वटवृक्ष बन कर ख्याति अर्जित करेगा।
माँ वीणा पाणि की वीणा यह सन्देश देती है पुस्तकीय ज्ञान के अतिरिक्त विद्यार्थियों को अन्य कलाओं में भी निपुण होना चाहिए। गायक, नर्तक तथा संगीताचार्य भी वसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती का पूजन विद्यार्थियों की उपस्थिति में करते हैं। माला इस बात का सन्देश देती है कि जीवन में सुख शान्ति प्राप्त करने के लिए अध्यात्म में भी रुचि होना चाहिए। बुद्धिमत्ता ही मानव जीवन की बहुमूल्य सम्पदा है। अत: प्रात: सायं सरस्वती की वन्दना हाथ जोड़कर करनी चाहिए :-
”सरस्वती महाभागे विद्ये कमललोचने।
विद्यारुपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तुते।।ÓÓ
तथा
”या देवी सर्व भूतेषु बुद्धि रुपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।ÓÓ
विद्यालयों में भी प्रतिदिन प्रार्थना के समय ”या कुन्देन्दु तुषार हार धवला या शुभ्रवस्त्रावृताÓÓ- यह सरस्वती वन्दना विद्यार्थियों द्वारा सस्वर गाई जाती है। विद्यालयों के विशेष कार्यक्रमों में ‘हे शारदे माँ हे शारदे माँ अज्ञानता से हमें तार दे माँ! का सस्वर पाठ कर सरस्वती वन्दना की जाती है। अतिथिगण द्वारा दीप प्रज्वलन किया जाता है। इस अवसर पर पीत वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है। आम्रमंजरी, बेर, पीले तथा सफेद फूल सरस्वती देवी को अर्पित किए जाते हैं।
वसन्त ऋतु के आगमन के साथ ही चारों ओर प्रकृति की छटा का सुन्दर रूप निखर जाता है। हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध कवि श्री सुमित्रानन्दन पंत ‘ग्राम श्रीÓ नामक कविता में धरा पर आये हुए परिवर्तन का वर्णन करते हुए लिखते हैं-
रोमांचिक सी लगती वसुधा
आयी गेहूं में बाली,
किंकिणिया है शोभाशाली।
उड़ती भीनी, तैलाक्त गन्ध,
फूली सरसों पीली-पीली,
लो हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि नीली नीला।

जब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली।
झर रहे ढाँक पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मत वाली।
प्रकृति के सुकुमार कवि श्री सुमित्रानन्दन पंत की इन कुछ पंक्तियों में धरा पर व्याप्त वासंतिक छटा का वर्णन पाठकों के हृदयस्थल को झंकृत कर वसन्ताच्छादित वसुधा का नयनाभिराम चित्र उपस्थित कर देता है।
इस प्रकार सनातन परम्परा का यह वासंतिक पर्व ईश्वर प्रदत्त प्रकृति है जिसे युवा पीढ़ी को संचित रखकर सर्वदा वसंत पंचमी के आनन्दोत्सव को अक्षुण्ण बनाए रखना है।

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